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मैं बचपन से ही चाय का प्रेमी रहा हूँ और Tea Estate कौसानी में ही मेरा जन्म हुआ है। डॉ. सुरेश प्रसादजी की काव्यमयी चाय पीकर इसी कारण विशेष रूप से आनंदित अनुभव करता हूँ। डॉ. सुरेशजी की चाय की प्याली में सुरा से भी अधिक मादकता है। पाठक एक पद ‘चाय’ का पढ़ें और एक चुस्की चाय पी लें—तभी उन्हें इस अद्भुत काव्य का वास्तविक महत्त्व जान पड़ेगा। इसका एक-एक चरण महाकाव्य का आनंद देता है, क्योंकि महाकाव्य के प्रेमी कितने होते हैं? चाय के प्रेमी आपको मजदूर से मंत्री तक सभी स्तरों के लोग मिलेंगे। इसलिए मुझे विश्वास है कि डॉ. सुरेश प्रसाद का यह शक्तिवर्धक टॉनिक ‘चाय’ भारत ही नहीं, अन्य हिंदी-प्रेमी देशों में भी अत्यंत लोकप्रिय होगी। इसकी महिमा से परिचित होकर लोग भाँग, मदिरा, अफीम आदि जहरीली चीजें खाना छोड़कर ‘चाय’ के स्वास्थ्यवर्धक चरणों का सेवन करेंगे। उन्होंने अपनी ललित भावभीनी भाषा की प्याली में चाय रूपी महौषधि भरकर लोगों का उपकार किया। सिंधु-मंथन के कारण अमृत के बदले चाय की ही प्याली निकली होगी। —सुमित्रानंदन पंत —सुमित्रानंदन पंत
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