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कल तक भारत में जिस मीडिया को पूर्णकालिक आमदनी का जरिया नहीं माना जाता था, आज वही दुनिया की सबसे बड़ी मीडिया इंडस्ट्री बन गया है। अपने आप में यह एक चमत्कार से कम नहीं है। आज मीडिया की करीब-करीब सभी विधाओं का विस्तार मायावी ढंग से हुआ है। प्रिंट हो, ब्रॉडकास्ट, टेलीविजन या फिर सोशल मीडिया—सभी में पेशेवरों की जबरदस्त माँग है। जितनी माँग है, उसकी तुलना में आपूर्ति अत्यंत कम है। बेरोजगारी के कारण बड़ी संऌख्या में नौजवान इस क्षेत्र में आते हैं और किस्मत आजमाना चाहते हैं, लेकिन इन बेरोजगारों को तराशकर एक अच्छे मीडियाकर्मी में बदलने वाली टकसाल का अकाल है। ऐसे में लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ के लिए चुनौतियों का एक विराट जाल सामने है। कुहासे भरे माहौल में रोशनी की एक किरण की तरह संदीप कुलश्रेष्ठ इस पुस्तक को हमारे बीच लेकर आए हैं। इसका स्वागत किया जाना चाहिए। संदीप ने इस पुस्तक के माध्यम से गागर में सागर भरने का काम किया है। पत्रकारिता के छात्रों और इस क्षेत्र में नए पेशेवरों के लिए संदीप की यह किताब ज्ञान के अनूठे झरने की तरह है। आज के दौर में मीडियाकर्मी जिस संकट का सामना कर रहे हैं, उसका सामना करने में यह पुस्तक कुंजी का काम करेगी।.
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