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वाचिक साहित्य अर्थात् लोक-साहित्य की सुदीर्घ परंपरा और उसके विश्वव्यापी विस्तार से आज बुद्धिजीवी वर्ग और साहित्यकार भी न केवल परिचित हुए हैं वरन् उसका महत्त्व भी स्वीकार करने लगे हैं। लोक-साहित्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी सुदीर्घ और समृद्ध है। इसके माध्यम से सांस्कृतिक विकास और सभ्यता के उत्थान-पतन का इतिहास समझा जा सकता है। मानवीय जीवन-मूल्यों के प्रति बदलती दृष्टियाँ और उसकी शाश्वत उपस्थिति सबका प्रामाणिक दस्तावेज भी इसमें सुरक्षित रहता है। अवधी की वाचिक परंपरा में लोकगीतों के रूप में पद्य विधा जितनी समृद्ध है, उतनी ही लोककथाओं के रूप में गद्य विधा भी है। गद्य-पद्य मिश्रित विधा लोकगाथाओं (फोक वैलेड्स), लोक सुभाषित, लोक मुहावरे और लोकोक्तियों की भी समृद्ध परंपरा अवधी में है। कुछ लोक विश्वास, रीति-रिवाज, व्रत-पर्व-त्योहारों की परंपरा भी वाचिक साहित्य के माध्यम से ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। अवधी लोक-साहित्य की वाचिक परंपरा में शास्त्र के वे सभी उद्देश्य समाहित हैं, जिन्हें ऋषि-मुनियों ने अपने ज्ञान के फल के रूप में अपने विचारों के माध्यम से जनहित में अभिव्यक्त किया है। वह ज्ञान लोक चेतना में संचरित होते हुए लोक व्यवहार में उतरता रहा है। उसकी वर्जनाएँ और स्वीकृति दोनों को अवधी लोक-साहित्य ने अभिव्यक्त किया है। अवधी लोकगीतों की यह विरासत पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी है।.
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Encyclopedia;
Music;