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मानवती के.हाथ में अग्निदत्त ने कमान दी और तीर अपने हाथ में लिया । दोनों के हाथ काँप रहे थे । अग्निदत्त का कंधा मानवती के कंधे से सटा हुआ था । सहसा मानवती की आँखों से आँसुओ की धारा बह निकली । मानवती ने कहा - '' क्या होगा, अंत में क्या होगा, अग्निदत्त?'' '' मेरा बलिदान?'' '' और मेरा क्या होगा? '' तुम सुखी होओगी । कहीं की रानी '' '' धिक्कार है तुमको! तुमको तो ऐसा नहीं कहना चाहिए । '' '' आज मुझे आँखों के सामने अंधकार दिख रहा है । ' ' मानवती की आँखों में कुछ भयानकतामय आकर्षण था । बोली - '' आवश्यकता पड़ने पर स्त्रियाँ सहज ही प्राण विसर्जन कर सकती हैं । '' अग्निदत्त ने उसके कान के पास कहा- '' संसार में रहेंगे तो हम -तुम दोनों एक -दूसरे के होकर रहेंगे और नहीं तो पहले अग्निदत्त तुम्हारी बिदा लेकर । '' दलित सिंहनी की तरह आँखें तरेरकर मानवती ने कहा- '' क्या? आगे ऐसी बात कभी मत कहना । इस सुविस्तृत संसार में हमारे-तुम्हारे दोनों के लिए बहुत स्थान है । '' -इसी उपन्यास से वर्माजी का पहला उपन्यास, जिसने उन्हें श्रेष्ठ उपन्यासकारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया । हमारे यहाँ से प्रकाशित वर्माजी की प्रमुख कृतियाँ मृगनयनी झाँसी की रानी अमरबेल विराटा की पद्यिनी टूटे काँटे महारानी दुर्गावती कचनार माधवजी सिंधिया गढ़ कुंडार अपनी कहानी.
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Encyclopedia;
Fiction;
Literature;