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पत्रकारिता के युग निर्माता: बालकृष्ण शर्मा 'नवीन’ डॉ. हरिवंशराय बच्चन के अनुसार, “वह वृषभ कंध ही नहीं, वृषभ कंठ भी थे। सन् 1933 में प्रयाग में द्विवेदी मेले के अवसर पर आयोजित कवि दरबार में पंतजी (सुमित्रानंदन) की भूमिका में कविवर नरेंद्र शर्मा उतरे थे, निरालाजी के लिए भी कोई लंबा, साँवला, दुबला व्यक्ति मिल गया था। पर नवीनजी के डील-डौल और काठी का कोई नौजवान प्रयाग में नहीं मिला। कवि दरबार के संयोजक राजर्षि टंडन के सुपुत्र गुरुप्रसाद थे, जिन्होंने नवीनजी को देखा था और उनकी कविता भी सुनी थी। अपने सिद्धांतों पर नवीनजी सदैव अडिग रहे। राजभाषा-राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर वह न तो अपने परम श्रद्धेय महात्मा गांधी की अनसुनी करने में हिचके, न अपने ‘प्यारे जवाहर भाई’ से जूझने में। गांधीजी की हिंदुस्तानी प्रचार सभा को उन्होंने बेझिझक ‘हिंदी-हत्या प्रचार सभा’ घोषित किया।.
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Biography;