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यह कोई कहानी नहीं है, न ही कोई साक्षात्कार है। पर हाँ, यह एक विवरण है...भावनाओं का, प्यार का, वात्सल्य का, कृतज्ञता का, दुआ का, आभार का, मुकद्दर का, अद्भुत संयोग का, शक्ति का, संपर्क का, संभावनाओं का, खुशी का...और एक माँ-बेटी के अतुल्य रिश्ते का। प्यार के भिन्न रूपों में एक रूप है— ‘वात्सल्य’ का और यही सर्वोपरि है। इस पुस्तक में एक माँ ने अपनी तरफ से अपनी बेटी को जीवन से संबंधित सिर्फ सामाजिक-सांस्कृतिक-पारिवारिक ज्ञान ही नहीं, वरन् स्नेहिल आभार सहित धन्यवाद भी दिया है। वो बेटी जो अपनी माँ का अभिमान भी है, स्वाभिमान भी; मार्गदर्शिका भी है, प्रेरणा भी; सखी भी है, हमराज भी; शिष्य तो है ही पर गुरु भी! ‘स्वेतिमा’, जिसका तात्पर्य है दुनिया को प्रकाशित करती एक चामत्कारिक रोशनी, जिसने चहुँओर अपना तेज फैलाना शुरू कर दिया है।.
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Women Empowerment;