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लीलाभूमिरियं विभोः भगवतो यद् दृश्यरूपं जगद्, यस्मिन्नाप्तसुधीभिरार्षभुवनेविज्ञाननीतिप्रियैः। सिद्धान्ताः नियमास्तथा च कृतयो निर्धारिताश्श्रयसे, श्रेष्ठान् तान् कवितायतिः मुनिनिभः प्रस्तौति भूयो ‘रविः’।। यह दृश्यमान संसार व्यापक परमात्मा का क्रीड़ास्थल है। ऋषियों की इस भूमि में विज्ञान एवं नीति?विद्या के विशेषज्ञ पवित्र मनीषियों ने मानव-कल्याण के लिए जिन सिद्धांतों एवं नियमों का प्रवर्तन किया था, उन्हीं श्रेष्ठ आदर्श सिद्धांतों को मुनितुल्य कविश्रेष्ठ डॉ. रवीन्द्र शुक्ल ‘रवि’ ने पुनः राष्ट्र भाषा में प्रस्तुत किया है। जो स्तुत्य है। उनकी प्रसिद्ध कविता— ‘कोई चलता पगचिह्नों पर, कोई पग चिह्न बनाता है। पगचिह्न बनाने वाला ही दुनिया में पूजा जाता है।’ वास्तव में उन्होंने हर क्षेत्र में पगचिह्न ही बनाए हैं। प्रस्तुत ‘संजीवनी’ ग्रंथ भी दरकते मानव मूल्यों को पुनः स्थापित और संपोषित करके, पगचिह्न बनाने का काम करेगा, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। दरकते मानव-मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा का प्रयास निश्चित रूप से वंदनीय और प्रशंसनीय है।
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Literature;