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महर्षि पतंजलि ने एक सूत्र दिया है- ' योगश्चित्त: वृत्ति निरोध: ' । इस सूत्र का अर्थ है-' योग वह है, जो देह और चित्त की खींच-तान के बीच, मानव को अनेक जन्मों तक भी आत्मदर्शन से वंचित रहने से बचाता है । चित्तवृत्तियों का निरोध दमन से नहीं, उसे जानकर उत्पन्न ही न होने देना है । ' ' योग और योगासन ' पुस्तक में ' स्वास्थ्य ' की पूर्ण परिभाषा दी गई है । स्वास्थ्य की दासता से मुक्त होकर मानवमात्र को उसका ' स्वामी ' बनने के लिए राजमार्ग प्रदान किया गया है । ' स्वास्थ्य ' क्या है? ' स्वस्थ ' किसे कहते हैं? मृत्यु जिसे छीन ले, मृत्यु के बाद जो कुछ हमसे छूट जाए वह सब ' पर ' है, पराया है । मृत्यु भी जिसे न छीन पाए सिर्फ वही ' स्व ' है, अपना है । इस ' स्व ' में जो स्थित है वही ' स्वस्थ ' है । कहावत है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा का वास होता है । यदि शरीर ही स्वस्थ नहीं होगा तो आत्मा का स्वस्थ रहना कहाँ संभव होगा । इस पुस्तक को पढ़कर निश्चय ही मन में ' जीवेम शरद: शतम् ' की भावना जाग्रत होती है । प्रस्तुत पुस्तक उनके लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है जो दवाओं से तंग आ चुके हैं और स्वस्थ व सबल शरीर के साथ जीना चाहते हैं ।.
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Yoga;