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आपातकाल के बारे में कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इस संघर्ष में गुजरात का विशेष योगदान रहा है। प्रस्तुत पुस्तक एक ऐसे व्यक्ति द्वारा लिखी गई है जिसने गुजरात से बाहर यानी यूरोप, अमेरिका आदि में बैठकर नहीं बल्कि गुजरात में रहकर, इस संघर्ष का एक सिपाही बनकर जो कुछ सहा, भोगा और देखा। ऐसे ही व्यक्ति की कलम से होनेवाला लेखन अधिक जीवंत एवं प्रेरक होता है। केवल गुजरात ही नहीं वरन् वैचारिक स्वतंत्रता की भी इस महत्त्वपूर्ण लड़ाई में अनेक छोटे-बड़े, ज्ञात-अज्ञात भाइयों-बहनों ने जिस देशप्रेम, लोकतंत्र में निष्ठा, वीरता, धैर्य, अनुपम उत्साह, निर्भीकता, समझदारी, निस्स्वार्थ सेवा एवं दूरदृष्टि का परिचय दिया—उसका वास्तविक ज्ञान इस पुस्तक से होता है। आपातकाल के दौरान देश भर में भूमिगत गतिविधियाँ चल रही थीं, भूमिगत संघर्ष में भाग लेनेवाले संगठनों, समितियों, उनकी व्यवस्थाओं एवं कार्यप्रणाली आदि की प्रमाणभूत जानकारी इस पुस्तक में दी गई है, जो अब तक आम जन तक नहीं पहुँच पाई थी। संघर्षकाल में भूमिगत कार्यकर्ताओं के बीच संपर्क बनाए रखने के लिए सत्ताधीशों की आँखों तले किस प्रकार से सुचारु व्यवस्था स्थापित और संचालित की गई, संचार सूत्र किस प्रकार कार्य करते थे—ये तमाम जानकारियाँ पहली बार इस पुस्तक के माध्यम से उजागर हुई हैं। आशा है, यह पुस्तक आपातकाल में गुजरात की केंद्रीय भूमिका और तत्कालीन निरंकुश सरकार की ज्यादतियों एवं इसके विरुद्ध भारतीय जनमानस के अपूर्व शौर्य और बलिदान का दिग्दर्शन कराएगी।.
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Politics;