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मीडिया को चौथा स्तंभ यों ही नहीं कहा गया। जब न्याय के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं; तब मीडिया ही एक माध्यम बचता है; किसी भी पीड़ित की मुक्ति का; उसके लिए न्याय का राजपथ मुहैया कराने में; लेकिन राकेशजी की मेधा सिक्के के दूसरे पहलू को नजरंदाज नहीं करती। वे हमारे देश में ही नहीं; दुनिया भर में मीडिया के दुरुपयोग और उससे समाज को होनेवाली क्षति से परिचित हैं। फेक न्यूज; पेड न्यूज; दलाली; ब्लैकमेलिंग; पीत-लेखन का जो कचरा मीडिया के धवल आसमान पर काले बादलों की तरह छाया हुआ दिखता है; वह उन्हें बहुत उद्वेलित करता है; क्योंकि उन्होंने पत्रकारिता को बदलाव के एक उपकरण की तरह चुना था; न कि किसी व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा के तहत।
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Cinema;
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