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यदि भाषा ' बहता नीर' है तो व्याकरण उसका ' तटबंध ' । जिस प्रकार तटबंध जलधारा का नियमन करता है उसी प्रकार व्याकरण भाषा का । तटबंध यदि जलधारा को मर्यादा तोड़ने से रोकता है तो व्याकरण भी भाषा को मर्यादा का उल्लंघन केरने से रोकता है । जलधारा और भाषा यदि दोनों प्राकृतिक अजसता की प्रतीक हैं तो तटबंध और व्याकरण उन्हें मर्यादित करने के मानवीय अध्यवसाय के । यदि धारा कुपित अवस्था में धन-जन की हानि करती है तो भाषा भी अराजक स्थिति में विचार- संपत्ति को विश्रृंखलित करती है । यदि धारा की अराजकता के बावजूद तटबंध का महत्त्व अक्षुण्ण रहता है तो भाषा की अराजकता के बावजूद व्याकरण की उपयोगिता कम नहीं होती। प्रस्तुत पुस्तक में प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी व वैयाकरण डॉ. बदरीनाथ कपूर ने व्याकरण के सूक्ष्म-से -सूक्ष्म उपयोग को दृष्टिगत करते हुए व्याकरण संबंधी विवादास्पद बातों का समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया है । यह पुस्तक हिंदी व्याकरण का एक मानक स्वरूप स्थापित करने में सफल होगी तथा स्कूल-कॉलेज के छात्र- अध्यापक' व सुधी पाठक इससे अपनी भाषा को और परिष्कृत कर पाएँगे, ऐसा हमारा विश्वास है |
Tags:
Hindi;
Grammar;