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विचारों में डूबे हुए गुरुचरण बाबू एकांत कमरे में बैठे थे। उनकी छोटी पुत्री ने आकर कहा; ‘‘बाबू! बाबू! माँ ने एक नन्ही सी बच्ची को जन्म दिया है।’’ यह शुभ समाचार गुरुचरण बाबू के हृदय में तीर की भाँति समा गया; उसका चेहरा ऐसा सूख गया; मानो कोई बड़ा भारी अनिष्ट हो गया हो! यह पाँचवीं कन्या थी; जो बिना किसी बाधा के उत्पन्न हुई थी।—यह इसी पुस्तक से।
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Biography;
Self Help;