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आज के फूल, कल के नागरिक कुछ अधिकार भी रखते हैं; परंतु कुछ कारणों से मूलभूत अधिकारों से वंचित रह जाते हैं । बाल उम्र कुछ सीखने की होती है; किंतु चिंता का विषय है कि इसी उम्र में बच्चे तरह-तरह के शोषणों के शिकार होते हैं । बच्चों के शोषण को रोकने तथा उनके सर्वांगीण विकास के प्रति आज के समाजशास्त्री तथा स्वयंसेवी संस्थाएँ चिंतित हैं । बच्चे अपनी लड़ाई स्वयं नहीं लड़ सकते । विश्व के सभी देशों की सरकारों और राज्य सरकारों ने बच्चों के लिए विशेष कानून बनाए हैं; परंतु कोई उल्लेखनीय परिणाम प्राप्त नहीं हुए । मानवाधिकारों की सुरक्षा की लड़ाई केवल कानून के हथियारों से नहीं लड़ी जा सकती, बल्कि इसके लिए समाज की जागर्ति व जन-सहयोग की अत्यंत आवश्यकता है । लेखिका ने इस पुस्तक के माध्यम से समाज को संदेश दिया है कि केवल नीतियाँ बना लेने अथवा अपार धनराशि खर्च करने से समस्याओं पर काबू नहीं पाया जा सकता; बल्कि शिक्षा, जन चेतना, समाजशास्त्रियों, पंचायतों, शिक्षाविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, गैर सरकारी संस्थाओं आदि सभी के सहयोग से बाल शोषण संबंधी समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है और बच्चों के अधिकारों की रक्षा की जा सकती है ।
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Children Book;