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सुपात्र को दान देना; गुरु के प्रति विनय रखना; प्राणिमात्र के प्रति दया रखना; न्यायपूर्ण आचरण करना; दूसरों के हित का विचार करना; लक्ष्मी का अभिमान नहीं करना और सज्जन पुरुषों की संगति करना सामान्य धर्म का स्वरूप है। निर्मल बुद्धिवाले व्यक्तियों को इनका पालन करना चाहिए। त्याग धर्म है; भोग अधर्म है। संयम धर्म है; असंयम अधर्म है। धर्म अनमोल है; मूल्य से प्राप्त होनेवाला धर्म नहीं है। व्यक्ति धर्म को समझे; बुराइयों का त्याग करे; नशा छोड़े; गुस्सा छोड़े और बेईमानी को छोड़े। धर्म को समझकर पाप को छोड़नेवाला व्यक्ति दुःख-मुक्त होता है और अधर्म के रास्ते पर चलनेवाला अथवा अदृष्टधर्मा व्यक्ति अपने लिए दुःख तैयार कर लेता है। प्रस्तुत पुस्तक में इसी प्रकार के आध्यात्मिक विकास और भावोन्नति के अनेक सूत्र प्रतिपादित हैं। यह हर आयु वर्ग के पाठकों को निश्चय ही सत्पथ पर अग्रसर करने में सक्षम है। मानव-जीवन को तनावमुक्त कर सरल और आनंदमय बनाने का मार्ग प्रशस्त करती प्रीतिकर पुस्तक।
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Stories;