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राजेंद्र माथुर हिंदी पत्रकारिता के उस संधिकाल में संपादक के रूप में सामने आए थे, जब हिंदी अखबार अपने पुरखों के पुण्य के संचित कोष को बढ़ा नहीं पा रहे थे । यह जमापूँजी इतनी नहीं थी कि हिंदी की पत्र-पत्रिकाएँ व्यावसायिकता की वहुनी चुनौती को स्वीकार करते हुए इसे चत्रार के दबाव से बचा सकें । राजेंद्र माथुर रच्च कोटि के पत्रकार थे । उनके पास वह बौद्धिक प्रतिभा थी, जो पत्रकार को अपने व्यवसाय के शिखर पर ले जाती है । उनमें वह उच्च नैतिकता थी, जो लेखनी के धनी एक पत्रकार को आदर्शों के प्रति निष्ठावान बनाती है । राजेंद्र माथुर में बौद्धिकता और सच्चरित्रता का असाधारण संगम था, डमीलिए वे हिंदी पत्रकारिता में शिखर पर स्थान बना सके । वे असाधारण शैलीकार थे । अंग्रेजी साहित्य से प्रभावित उनकी हिंदी लेखन-शैली बिंब-प्रधान थी । उनके मुहावरे अपने होते थे । उनमें अभिव्यंजना की अद्भुत शक्ति थी । हिंदी पत्रकारिता के इनिहास में वे शैलीकार के रूप में याद किए जाएँगे । प्रस्तुत पुस्तक में श्री शिवअनुराग पटैरया ने श्री राजेंद्र माथुर के व्यक्तित्व और कुतित्व का विवेचन किया है ।
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Biography;