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अशफाक उल्ला खाँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफाक उल्ला खाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस ‘हसरत’ था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिंदी व अंग्रेजी में लेख एवं कविताएँ लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफाक उल्ला खाँ वारसी हसरत था। अशफाक का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ़ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्तूबर, 1900 को हुआ था। उनके वालिद का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला खाँ था। उनकी वालिदा मजहूरुन्निशा बेगम खूबसूरत खबातीनों में गिनी जाती थीं। अशफाक अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। सब उन्हें प्यार से ‘अच्छू’ कहते थे। बंगाल में शचींद्रनाथ सान्याल व योगेश चंद्र चटर्जी जैसे दो प्रमुख व्यक्तियों के गिरफ्तार हो जाने पर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का पूरा दोरोमदार बिस्मिल के कंधों पर आ गया। इसमें शाहजहाँपुर से प्रेमकृष्ण खन्ना, ठाकुर रोशन सिंह के अतिरिक्त अशफाक उल्ला खाँ का योगदान सराहनीय रहा। काकोरी ट्रेन डकैती में उनकी उल्लेखनीय भूमिका रही। 26 सितंबर, 1925 की रात जब पूरे देश में एक साथ गिरफ्तारियाँ हुईं अशफाक पुलिस की आँखों में धूल झोंककर फरार हो गए। उन्हें पुलिस बहुत बाद में गिरफ्तार कर पाई थी। 13 जुलाई, 1927 को उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई।
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