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मुसाहिबजू ने पूछा-' राजा ने कोई नवीन आज्ञा निकाली है?' कोतवाल ने कहा-' हाँ । ' मुसाहिब ने बिना किसी संयम के तुरंत पूछा-' वह क्या? क्या आज्ञा निकली है?' ' उसी को प्रकट करने अकेला आया हूँ । ' कोतवाल ने मुसाहिबजू की आँख में आख गड़ाकर उत्तर दिया-' मर्जी हुई है कि मेहतरों को और लल्ली को पकड़कर किले के बंदीगृह में बंद कर दो और आपको पकड़कर दरबार में पेश करो । ' मुसाहिबजू ने भी निगाह मिलाए हुए ही कहा-' और यदि ऐसा न हो सके तो?' कोतवाल बोला-‘ इसके आगे उन्होंने और कुछ मर्जी तो नहीं की है, परंतु इसके आगे जो कुछ होना चाहिए वह मैं समइा गया हूँ । ' मुसाहिबजू-' वह क्या?' कोतवाल-' वह यह कि अपने ऊपर हथियार चलाकर मैं आत्मघात कर लूँ । ' मुसाहिबजू ने दृढ़तापूर्वक कहा-' जो कुछ भी हो । राजा की आज्ञा का पालन मेरे जीते-जी नहीं हो सकता । ' -इसी उपन्यास से समर्पण, सेवा और अनुशासन का भाव सैनिक का गुण है । सच्चा सैनिक अपने देश और शासक के लिए अपना सिर दे भी सकता है और किसी का सिर ले भी सकता है । पर यदि शासक के कारण सैनिक के सिर पर ही आ बने तो? इतिहास गवाह है, ऐसे समय में शासकों ने अपने सिर कटा दिए अपने सेवक के मान की खातिर । ऐतिहासिक घटना पर आधारित वर्माजी का यह प्रसिद्ध उपन्यास ऐसे ही सैनिक और शासक की कहानी है ।
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Fiction;
Stories;