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भात परोसनेवाले ने नंदराम की पत्तल में परोसने के बाद कुछ चावल मुँह पर छिटक दिए । नंदराम ने मुंह पर चिपके चावलों को जल्दी से छुड़ाने की कोशिश की तो कुछ रगड़ खाकर और चिपक गए । कन्यापक्ष के लोग खिलखिलाकर हँस पड़े । पहली पंगत में जिस मनुष्य ने भात परोसा था, वही इस पंगत में रायता परोस रहा था । बाराती बेतरह पकवानों पर टूट पड़े । थोड़ी देर में रायता परोसनेवाला ' लो साहब रायता, लो साहब रायता ' चिल्लाता हुआ सबके सामने से जाने लगा । नंदराम के सामने भी रायता परोसनेवाला अपनी पुकार के साथ पहुँचा । नंदराम इस समय लड्डुओं के साथ युद्ध कर रहा था, इसलिए उसने रायते के लिए सिर हिला दिया और फिर लड्डू-युद्ध में मग्न हो गया । परोसनेवाला दूसरी पत्तल के सामने पहुँचा । परंतु तिरछी निगाह से वह देख नंदराम की तरफ रहा था । नंदराम का सिर पत्तल की ओर नीचा हुआ, उधर तपाक से परोसनेवाले ने रायते का घड़ा नंदराम के सिर पर उड़ेल दिया । साफा, ओंखें, मुँह, मूँछ, कुरता और धोती तक रायते से भर गई । मुँह में पड़ा हुआ लड्डू खड़ा हो गया । जितनी हँसी बारातियों को पहली कच्ची पंगत के दिन आई थी, उसकी तौल से दुगुनी हँसी आज अकेले उस रायता परोसनेवाले को आई । शायद रायते की खटाई और तेजी के कारण नंदराम की आँखें बिलकुल लाल हो गईं । खाना छोड़कर मुँह पोंछता हुआ तुरंत उठ खड़ा हुआ । ' आगे यह साला किसीके साथ ऐसा मजाक न करने पाएगा, ' कहकर नंदराम ने रायता परोसनेवाला धड़ाम से नीचे दे मारा और फिर - इसी उपन्यास से ऐतिहासिक उपन्यासों के साथ -साथ वर्माजी ने जिन सामाजिक उपन्यासों की रचना का है उनमें तत्कालीन रीति-रिवाज भी साकार हो उठे हैं । ' संगम ' उपन्यास यद्यपि सामाजिक घटनाओं को लेकर लिखा गया है; तथापि यह सत्य घटनाओं पर आधारित है ।
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Love;
Romance;
Stories;