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रामकृष्ण परमहंस को जानना प्रत्यक्षतः ईश्वर को जानने जितना कठिन है—ऐसा सभी ज्ञान-संपन्न; अध्यात्म-संपन्न; वैराग्य-संपन्न; तंत्रविद्या-संपन्न और सकल विद्या-संपन्न विद्वान् कहते आए हैं। परमहंस के चरित्र से भारतीय विद्वान् तो प्रभावित हैं ही; विदेशी विद्वान् भी आश्चर्यचकित तथा प्रभावित हैं। सुविख्यात फ्रेंच साहित्यकार एवं तत्त्वज्ञ रोम्याँ रोलाँ ने जब श्री रामकृष्ण परमहंस के बारे में पढ़ा तब वे बेलूर मठ में आए और उन्होंने उनके संबंध में तमाम जानकारियाँ प्राप्त कीं। यह घटना श्री रामकृष्ण परमहंस के समाधि लेने के चालीस वर्ष बाद की है। विश्व-भ्रमण करनेवाला अनुभूति प्राप्त यह लेखक जब उनके बारे में लिखने लगा तो लिखते-लिखते सोचने लगा— ‘इस अगम्य व्यक्तित्व का स्वरूप क्या है? क्या सच में ईश्वर जन्म लेता है? यह परमेश्वर की संवेदना है या प्रत्यक्ष पदार्पण? उसका जन्म लेना कल्पना है या संभ्रमित मन की आभासात्मक आकृति? क्या उसका अस्तित्व; यानी जीवात्मा परमात्मा का अंश है?’ इन प्रश्नों का उत्तर जब रोम्याँ रोलाँ खोजने लगे तो उन्होंने भारतीय वैदिक साहित्य; ऋषि-परंपरा; संस्कृति; आचार-विचार संहिता; मनोभावना से संलग्न घटनाओं पर विचार किया और उसमें इतने तल्लीन हो गए कि वे लिखते हैं—‘पश्चिम देशवासी होने से स्वतंत्र विचार-शक्ति मैंने पाई है। भारतीय संस्कृति पर मेरा पूर्ण विश्वास है; श्रद्धा है। मैं श्री रामकृष्ण को अपना अंतरंग मानता हूँ। मैं उन्हें उनके शिष्य तथा भक्तों की तरह भगवान् नहीं मानता; मैं उनमें महामानव की अर्थात् ईश्वरीय गुणों की अधिकता मानता हूँ।’
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Religious;
Spirituality;