About Product
कल्पना और सपनों की दुनिया में घूमती, विचरती युवती मनोभूमि से कर्मभूमि में उतरती है। उसका विवाह होता है। इस कर्मभूमि में उस पर आँधी-पर-आँधी, तूफान-पर-तूफान आये। कर्मभूमि तपोभूमि बन गई। यहाँ से नारी का प्रवेश त्यागभूमि में होता है। चम्पई साड़ी का लाम्बा लहराता पल्ला पति के साथ देहरी को लाँघकर घर में प्रविष्ट हुआ। यहाँ पर पल्ले से सिर ढक लिया गया। हलदी रंग की साड़ी में कत्थई रंग का चौड़ा पाट हो गया। साड़ी के रंग मारवाड़ के गुलाबी, नारंगी, सिंदूरी और लाल रंग हो गए। पल्ले से जो सिर ढका गया तो वह फिर ढका ही रहा।
Tags:
Fiction;
Stories;