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नाट्य-शास्त्र और रंगमंच—दीनानाथ साहनी संस्कृत का नाट्य-साहित्य सबसे प्राचीन है। और भरतमुनि का नाट्य-शास्त्र दुनिया का प्राचीनतम नाट्य-ग्रंथ है। वह आज भी सुरक्षित है। अनेक भारतीय और विदेशी भाषाओं में संस्कृत नाटकों का अनुवाद हुआ है। हर क्षेत्र में स्थानीय भाषाओं में लोक-नाटक मिलते हैं। इनमें स्थानीय गीत और नृत्य की प्रमुखता होती है। इस तरह के लोक-नाट्यों के रचनाकार और दर्शक स्थानीय व्यक्ति होते हैं। ये लोक-नाट्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे हैं। ये कितने पुराने हैं, यह कहना कठिन है। नाट्य एक अद्भुतकला है। जब नाटक लिखा जाता है तो वह साहित्य है, मंचित होता है तो वह विज्ञान है, तकनीक है; क्योंकि उसमें अनेक ऐसी विधाओं का समावेश हो जाता है, जो लेखन से अलग होती हैं। मसलन निर्देशन, अभिनय, मंच व्यवस्था, सेट डिजाइन, मेकअप, दरजी के काम, बढ़ई के काम, प्रकाश-संचालन, वस्त्र-विन्यास, ध्वनि-उत्पादन, निर्माण आदि। हिंदी नाट्य एवं रंगमंच का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करती एक उपयोगी पुस्तक।
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Drama;