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'और यह कौन है, बतला?’ उन लोगों में से एक ने पूछा। गाड़ीवान ने तुरंत उत्तर दिया, ‘ललितपुर का एक कसाई। ’ इसका खोपड़ा चकनाचूर करो, दाऊजू यदि ऐसे न माने तो । असाई-कसाई हम कुछ नहीं मानते । ' ' छोड़ना ही पड़ेगा । ' उसने कहा, ' इसपर हाथ नहीं पसारेंगे और न पैसे ही छुएँगे ।' दूसरा बोला, ' क्या कसाई होने से? दाऊजू, आज तुम्हारी बुद्धि पर पत्थर पड़ गए हैं-मैं देखता हूँ, ' और तुरंत लाठी लेकर गाड़ी में चढ़ गया । लाठी का एक रज्जब की छाती में अड़ाकर उसने तुरंत रुपया पैसा निकालकर देने का हुक्म दिया । नीचे खड़े हुए उस व्यक्ति ने जरा तीव्र स्वर से कहा, ' नीचे उतर आओ, नीचे उतर आओ । उसकी औरत बीमार है । ' ' हो, मेरी बला से!' गाड़ी में चढ़े हुए लठैत ने उत्तर दिया, ' मैं कसाइयों की दवा हूँ । ' और उसने रज्जब को फिर धमकी दी । नीचे खड़े हुए उस व्यक्ति ने कहा, ' खबरदार, जो उसे छुआ! नीचे उतरी, नहीं तो तुम्हारा सिर चूर किए देता हूँ । वह मेरी शरण आया था । ' -इसी पुस्तक से प्रस्तुत कहानी संग्रह में पाठकों को पढ़ने को मिलेंगी-' शरणागत ', ' हमीदा ' ' तोषी ', ' राखी ', ' कलाकार का दंड ', ' अँगूठी का दान ' एवं ' घर का वैरी ' जैसी लेखक की प्रख्यात कहानियाँ । वर्माजी की कहानियों का यह संग्रह पठनीय एवं संग्रहणीय-दोनों है ।
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Fiction;
Stories;