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हिन्दी में शोधप्रविधि', 'शोधप्रक्रिया', 'अनुसंधान विवेचन' इत्यादि शीर्षकों से कतिपय पुस्तकें उपलब्ध हैं; परन्तु इन पुस्तकों में कुछ सार्थक प्राप्त नहीं होता। केवल शोध स्वरूप पर ही थोड़ी-बहुत सामग्री प्राप्त होती है। परिणाम यह होता है कि प्रत्येक शोधार्थी अपनी समझ अथवा निर्देशक के सुझावों की अनुरूपता में शोध में व्यवहार्य कार्यविधि को अपनी सुविधानुसार निश्चित कर लेता है। इसी कारण हम देखते हैं कि कार्यविधि के व्यावहारिक रूप की दृष्टि से हिन्दी के किन्हीं भी दो शोधप्रबन्धों में एक शैली नहीं अपनाई गयी है। इसलिए हिन्दी में एक निश्चित और मानक व्यावहारिक शोध कार्यविधि की अत्यन्त आवश्यकता है। शोध के अर्थ एवं स्वरूप पर मैंने यथासम्भव वस्तुनिष्ठ दृष्टि से विचार किया है। साथ ही शोध के व्यावहारिक रूप को सहेजते हुए उसे मानक रूप प्रदान करने का मेरा प्रयास रहा है। शोध के इस बाह्य स्वरूप को निश्चित करते हुए मैंने हिन्दी भाषा, वर्तनी, लिपि, टंकण, मुद्रण इत्यादि को विशेष रूप से ध्यान में रखा है। 'पुस्तकालय का उपयोग' के अन्तर्गत मैंने शोध और पुस्तकालय के अन्तःसम्बन्ध को ध्यान में रखते हुए अभ्यासों सहित पुस्तकालय के उत्तम और सुलभ उपयोग की कतिपय विधियों को स्पष्ट करने की चेष्टा की है।
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Vyakaran;