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अदम भीतर से नसीरुद्दीन शाह की तरह सचेत और गम्भीर हैं। धूमिल की तरह आक्रामक और ओम पुरी की तरह प्रतिबद्ध। यह कुछ अजीब-सी लगने वाली तुलना है, पर इस फलक से अदम का चेहरा साफ-साफ दिख सकता है, जो यूँ देखने पर समझ में नहीं आता। मामूली, अनपढ़, मटमैलापन भी इतना असाधारण, बारीक और गहरा हो सकता है, इसे सिर्फ अदम को सुन और पढ़कर समझा जा सकता है। किताबी मार्क्सवाद सिर्फ उन्हें आकृष्ट कर सकता है जिनकी रुचि ज्ञान बटोरने और नया दिखने तक है। पर जो सचमुच बदलाव चाहते हैं और मौजूदा व्यवस्था से बुरी तरह तंग और परेशान हैं, वे अपने आस-पास के सामाजिक भ्रष्टाचार और आर्थिक शोषण के खिलाफ लड़ना जरूर चाहेंगे। वे सचमुच के सर्वहारा हैं। जिनके पास खोने को न ऊँची डिग्रियाँ और ओहदे हैं, न प्रतिष्ठित जीवन शैली। अदम इन्हीं धाराओं के शायर हैं।
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Poetry;
Self Help;