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नदी-रंग जैसी लड़की एस.आर. हरनोट का दूसरा उपन्यास है। पहला उपन्यास हिडिम्ब हिमाचल प्रदेश के जिस अछूते लेकिन लोकख्यात विषय पर लिखा गया था, उसने अपने शिल्प और भाषाई प्रयोग के कारण प्रसिद्धि के नये आयाम छुए थे। हरनोट हिन्दी के विरले कथाकार हैं, जिनके पास हिमाचली जीवन की अछूती और अनूठी कथाओं का भरा-पूरा ख़ज़ाना है। पहाड़ में जीवन पहाड़ जैसा कठोर और बड़ा होता है, उसकी सुन्दरता केवल दूर से दिखाई देती है, निकट आने पर अनेक प्रकार के दुख और अभाव दिखाई देते हैं। दुष्कर और अभावभरे जीवन के तमाम क़िस्से हरनोट की लेखनी से जीवन्त हो उठते हैं। नदी-रंग जैसी लड़की उपन्यास की सुनमा दादी का जीवन सामान्य नहीं है, उसे असामान्य बनाने में हमारे तथाकथित विकास की बड़ी नकारात्मक और अमानवीय भूमिका रही है। पर सुनमा दादी उन सब लोगों से लड़ती है जो अपने ही अंचल, नदियों और लोगों के विरोध में अमानवीय और क्रूर व्यवस्था का साथ देते हैं। पहाड़ी जीवन की सुन्दरता तो उसकी नदियों से है, जो जीवन के साथ प्रकृति से भी अटूट नाता जोड़ती हैं। विकास के नाम पर अब नदियों में बड़े-बड़े बाँध बाँधे जा रहे हैं, उनके पानी को दूसरे प्रदेशों में भेजा जा रहा है लेकिन जिस हिमाचल की सुन्दरता के मूल में वे नदियाँ हैं, उन्हें उजाड़कर वीरान किया जा रहा है। बंजर होती ज़मीन, सूखती नदियों और उजड़ते गाँवों की दुखद कथा को हरनोट ने मन की भीगी स्याही से लिखा है। वह द्रवित करता है। - प्रो. सूरज पालीवाल
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