Lekin (Hindi)

Lekin (Hindi)

₹ 249 ₹299
Shipping: Free
  • ISBN: 9789390678587
  • Edition/Reprint: 2022
  • Author(s): Dr. Kumar Vishvas
  • Publisher: VANI PRAKASHAN
  • Product ID: 592542
  • Country of Origin: India
  • Availability: Sold Out

About Product

लेकिन अगर आप कभी ठीक से गौर फ़रमाएँ तो पायेंगे कि आदमी के ख़ुशदिल जानवर होने के राह की जितनी भी बाधाएँ हैं, उसके आसपास की जितनी भी समस्याएँ हैं, उनका मूल कारण संवादहीनता ही तो है। किन्तु, परन्तु, अगर, मगर और लेकिन आदि से उपजी इस संवादहीनता को हटाकर बाग़-ए-बहिश्त से हुक्म-ए-सफ़र किये गये असरफ़उल मखलुक़ात का अस्तित्व अगर सहजता की ओर बढ़े तो वह न केवल अपने लिए बल्कि बाक़ी सबके लिए भी ख़ुद को ठीक-ठीक सौंप सकेगा। यूँ तो इसान भी ईश्वर की ही रचना है पर कई बार उसके इन्सान बने रहने की जद्दोजहद देखकर ऐसा लगता है कि भगवान होने में तो फिर भी बस विलीन या अस्तित्वहीन हो जाने की आसानी सी है पर इन्सान होना उसके लिए शायद ज़्यादा मुश्किल काम है। मेरा ही एक शेर है- आदमी होना ख़ुदा होने से बेहतर काम है ख़ुद ही ख़ुद के ख़्वाब की ताबीर बनकर देख ले! मनुष्य के अलावा ईश्वर की बनाई सारी दुनिया ही बड़ी ख़ूबसूरत और अपने होने पर सहज सी है। आपने आज तक किसी इन्सान को ईश्वर की बनाई हुई शेष दुनिया से दुखी नहीं देखा होगा। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसे कल-कल बहती नदी का पानी चिढ़ाता हो, शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसे कूकती हुई किसी कोयल की मधुर ध्वनि और कुलाँचे भरते हिरणों की गति परेशान करती हो। हम सिर्फ़ अपनी बनाई दुनिया से दुखी और अपनी गढ़ी व्यवस्थाओं में हमारे ख़ुद के बाधा पहुँचाने से विचलित होते रहते हैं। इस दुःख और विचलन में कई ‘काश', 'अगर', 'मगर' और 'लेकिन' का दर्द छुपा होता है और आख़िरकार हमारी सारी नाराज़गी इन्हीं शब्दों की परिधि में ही तो घूमती रहती है। जॉन इसी 'काश', 'गोया', 'लेकिन' जैसे बेचारगी के घेरों में फँसी आदमजात की तारीख़ को शब्द देने वाले जादुगर हैं। हर इन्सान में तारीख़ को पढ़ते हए समय के चक्र को अपनी इच्छानुसार न घुमा पाने की टीस अवश्य भरी रहती है। जॉन का यह संग्रह उनकी इसी बेबसी और सवालों से जझते उनके वक़्त की छोटी-छोटी उलझनों का शेरी बयान है। जॉन को कुछ चीज़ों के 'हो जाने' और कुछ चीज़ों के 'न हो पाने' का गहरा मलाल है। 1947 में अलग-अलग लोगों की क्षुद्र राजनीतिक आकांक्षाओं के कारण जब अपने अस्तित्व के प्रारम्भ से ही जुड़े एक ही ज़मीन के दो टुकड़े कर दिये गये तो उस लकीर के फ़रेब में जॉन जैसा गहरा जुड़ा आदमी भी अपनी जड़ों से कट गया। आदमी होने की सोच वाली जड़ों से गहराई तक जुड़े जॉन को अपने अमरोहे से ख़ुद के कट जाने को लेकर गहरी नाराज़गी है। - डॉ. कुमार विश्वास

Tags: Novel;

Related Books

Rag - VIRAG
Rag - VIRAG
₹ 90 ₹ 150 40%
Shipping: ₹ 75
Macbeth
Macbeth
₹ 90 ₹ 150 40%
Shipping: ₹ 75
Waiting For the Mahatma
Waiting For the Mahatma
₹ 169 ₹ 225 24.9%
Shipping: ₹ 75
The World Of Nagraj
The World Of Nagraj
₹ 150 ₹ 200 25%
Shipping: ₹ 75
The Vendor of Sweets
The Vendor of Sweets
₹ 162 ₹ 215 24.7%
Shipping: ₹ 75
The Dark Room
The Dark Room
₹ 162 ₹ 215 24.7%
Shipping: ₹ 75

80262+ Books

Wide Range

87+ Books

Added in last 24 Hours

2000+

Daily Visitor

8

Warehouses

Brand Slider

BooksbyBSF
Supply on Demand
Bokaro Students Friend Pvt Ltd
OlyGoldy
Akshat IT Solutions Pvt Ltd
Make In India
Instagram
Facebook