Raavi Paar Paperback – 1 August 2021

Raavi Paar Paperback – 1 August 2021

₹ 94 ₹125
Shipping: ₹ 54
  • ISBN: 9789390625215
  • Edition/Reprint: 1st
  • Author(s): Balwant Singh
  • Publisher: Lokbharti Prakashan
  • Product ID: 566053
  • Country of Origin: India
  • Availability: Sold Out

About Product

रावी नदी से करीब दो मील पूर्व की ओर एक गाँव है जिसे चब्बा कहते हैं। चब्बा अपने ऊँचे-लम्बे जवानों के लिए अपने इलाके में दूर-दूर तक मशहूर था। हर लड़का जब सोलह-सत्रह साल की उम्र तक पहुँचता तो बड़े लोग उसके हाथ-पाँव निकलने से अन्दाज़ा लगाने लगते कि वह कैसा करारा जवान होगा। जिस लड़के से कुछ भी आशा बँध जाती , उसे हर ओर से खूब प्रोत्साहन मिलता। उन दिनों बागड़सिंह नया-नया जवान हुआ था। जवानी की मस्ती तो वैसे भी मशहूर है, लेकिन बागड़सिंह के दिमाग़ में यह मस्ती बिलकुल खरमस्ती का रूप धारण कर गयी थी। काबलासिंह साढ़े छह फुट से भी ऊँचा था और उसे पौने छह फुट से कम बागड़सिंह बिलकुल मच्छर-सा दिखायी दिया। यह माना कि बागड़सिंह काबलासिंह के मुक़ाबले में कुछ नहीं था, लेकिन इसमें भी कोई सन्देह नहीं था कि उसके बदन में भी बिजली कूट-कूटकर भरी हुई थी। सारे जवान काबलासिंह को देखकर एक ओर हट गये और काबलासिंह की नज़रें अब भी उस घुड़सवार पर जमी हुई थीं- सुजानसिंह ने घोड़ा दौड़ाया नहीं- वह पहले की तरह सहज से आगे बढ़ता चला गया. काबलासिंह ज्यों-का-त्यों दरवाजे पर हाथ रखे खड़ा था. और बागड़सिंह पीछे खड़ा मालिक की गुद्दी पर लहलहाते हुए लाल पीले और सफ़ेद नन्हें-नन्हें बालों को देख रहा था. “बागेड़या!” सुनकर बागड़सिंह का कलेजा धक-धक करने लगा. अपने शरीर की पूरी शक्ति लगाकर उसके मुँह से बड़ी ही भरी हुई आवाज़ निकली “जी। इसी से सुरजीत का रिश्ता कर देने के लिए कह रहा था? मालिक की यह आवाज़ सुनकर बागड़सिंह सुन्न हो गया.उसे भागने का कोई रास्ता दिखायी नहीं दे रहा था.अबकी उसके मुँह से भरी हुई आवाज तक न निकल सकी। अपनी बात का उत्तर न पाकर मालिक ने घूमकर उसकी ओर देखा. बागड़सिंह ने डरते-डरते अपनी पलकें ऊपर उठायीं उसने देखा कि काबलासिंह की घनी मूंछों तले उसके मोटे होंठों पर एक हल्की-सी मुस्कान चन्द्रमा की पहली किरण की तरह जन्म ले रही थी।

Tags: Novel; Fiction;

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