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बेहद भागदौड़ की जिन्दगी में जीवन का पिछला हिस्सा धूसर होता जाता है, जबकि हम उसे याद रखना चाहते हैं - एक विकलता का चित्र। रंग, स्वाद, हरकतें और नाजुक सम्बन्ध की चाहत - बस, एक कशिश है। भागती जिन्दगी में कशिश! स्मृतियों के बारीक रगरेशों के उभर आने की उम्मीद। तब यह किताब ‘किस्सा कोताह’ उष्मा के साथ नजदीक रखे जाने के लिए बनी है। जरूरी और सटीक। यह हमारे किस्सों का असमाप्त जीवन है। जैसे जीवन को चुपचाप सुनना है। एक के भीतर तीन-चार आदमियों को देखना है। यह राजेश जोशी के बचपन, कॉलेज या साहित्यिक व्यक्तित्व के बनने का दस्तावेज ही नहीं है बल्कि बीहड़ इतिहास में चले गए लोगों, इमारतों और प्रसंगों को वापस ले आने की सृजनात्मकता है। मध्य प्रदेश के भोपाल और उससे पहले नरसिंहगढ़ रियासत की साँसें हैं। संयुक्त परिवार की दुर्लभ छबियाँ। नाना, फुआ, भाइयों और पिता के लोकाचार, जो कि हम सबके अपने से हैं। अपने ही हैं। दोस्तों की आत्मीयता, सरके दिमागों का अध्ययन, राजनीति के अध्याय बन गए कुछ नाम, हमें अपने शहरों में खोजने का विरल अनुभव देते हैं। यह भटकन है। प्यास। बेगमकाल से इमर्जेंसीकाल तक का, इतिहास में लुप्त हो गए लोगों के विविध व्यवहारों का अलबम है। फिल्म जैसा साउंड ट्रेक है। भुट्टे, आम, सीताफल और मलाई दोने का मीठापन है। सुविख्यात कवि राजेश जोशी का यह अनूठा गद्य अपनी निज लय के साथ उस उपवन में प्रवेश करता है जिसे हम उपन्यास कहते हैं। यहाँ हम अपनी स्मृतियों, अपने लोगों, सड़कों, भवनों और सम्बन्धों को रोपने के लिए उर्वर भूमि पाते हैं। - शशांक|
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Novel;
Fiction;