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भगवती बाबू ने अपने उपन्यासों में भारतीय इतिहास के एक लंबे कालखंड का यथार्थवादी ढंग से अंकन किया है। स्वतंत्रता-पूर्व और स्वातंत्रयोत्तर दौर की विभिन्न सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिघटनाओं को उन्होंने अपनी विशिष्ट शैली में अंकित किया है। सबहिं नचावत राम गोसाईं की विषयवस्तु आजादी के बाद के भारत में कस्बाई मध्यवर्ग की महत्त्वाकांक्षाओं के विस्तार और उनके प्रतिफलन पर रोचक कथासूत्रों के माध्यम से प्रकाश डालती है। राधेश्याम, नाहर सिंह, जबर सिंह, राम समुझ आदि चरित्रों के माध्यम से यह उपन्यास आजाद भारत के तेजी से बदलते राजनीतिक-सामाजिक चेहरे को उजागर करता है।.
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Novel;
Fiction;