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अपने- अपने कोणार्क यानी कश्मीर से उड़ीसा का सफर! कश्मीर की सरसब्ज वादी में जन्मी और पली-बड़ी चन्द्रकान्ता को भारत के अनेक प्रांतों में रहने-बसने का मौका मिला । लेकिन उड़ीसा में बिताए गए छह वर्ष उनकी सर्जनात्मकता के लिए अमूल्य बन गए । उन्होंने वहाँ की जीवन-शैली, लोक रंगों और परंपराओं की महक महसूस की है, जिसका जीवंत प्रमाण है अपने- अपने कोणार्क! उड़ीसा की सांस्कृतिक धरोहर-पुरी और कोणार्क, जीवन के दो पहलू संपूर्ण जीवन का फलसफा यहाँ मौजूद है, जिसे लेखिका ने ऐतिहासिक एवं भौगोलिक परिदृश्य के साथ वर्तमान की सच्चाइयों से जोड़कर देखा है । उपन्यास की नायिका सुनी के माध्यम से उन्होंने आम ओडिया जन को उसके विगत और वर्तमान के साथ प्रस्तुत किया है । 'मोर गौरव जगन्नाथ' में विश्वास करता आम ओडिया जन अपने परंपरागत आलोक से मुग्ध, रक्षणशील तथा संस्कारवान भी है और हम सबकी तरह अंधविश्वासी और रूढ़ मानसिकता से ग्रस्त भी । कुनी इसी रक्षणशील परिवार की बड़ी बेटी है, हजारहा दायित्वों की साँकलों में कैद, गोकि वह उन्हें साँकलें समझती नहीं । वह अपनी लीक आप बनाती, वक्त की सच्चाइयों के रू-ब-रू होते अपने भीतर को जानने और पाने की कोशिश करती है । उड़ीसा की पृष्ठभूमि में वहाँ के इंद्रधनुषी रंगों को समेटे कुनी की यह कहानी सच की तलाश है ।.
Tags:
Novel;
Fiction;