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भारतीय गणतंत्र 60 वर्ष का हो गया है। आज का सबसे खतरनाक पहलू है कि भारत फिर ‘मुट्ठी भर अनाज’ पर गुजर-बसर किए उन्हीं दिनों की ओर तेजी से लौट रहा है, जब लाखों लोगों का पेट भरने के लिए उसे खाद्यान्न का आयात करना पड़ता था। भारत में सन् 1966-67 में गेहूँ की 5 लाख टन की रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई। उसके बाद के 20 वर्षों में गेहूँ उत्पादन में वृद्धि के बाद चावल, कपास, गन्ना, साग-सब्जी और फलों का उत्पादन भी बढ़ा। फल-सब्जियों में तो भारत विश्व के दो शीर्ष देशों में शुमार है। दुग्ध उत्पादन में भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। इसके बावजूद आज भुखमरी के कारण कर्ज का दंश झेलते-झेलते पस्त हुए लाखों किसान आत्महत्या कर रहे हैं। आज खेती घाटे का सौदा बन चुकी है। बढ़ते खाद्य आयात और खेती से किसानों की बेदखली के चलते भारत फिर उसी दिशा में बढ़ रहा है, जहाँ से उसने शुरुआत की थी। खाद्यान्न के आसन्न संकटों के प्रति सचेत करती एक पठनीय पुस्तक।
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Novel;
Fiction;